बच्चों के कान छिदवाना
पुरानी वैदिक परम्पराओं और भारतीय संस्कृति के चलते पूरे भारत के हर कोने में बच्चों के कान छिदवाना (Ear piercing) या “कर्णभेदन संस्कार” का प्रचलन है। यह किसी बच्चे के जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण समय होता है। हालाँकि इसमें उन्हें दर्द (Pain) होता है पर आने वाले भविष्य में उन्हें इससे फायदे भी मिलते है। चूँकि अलग-अलग जगह के अनुसार इन रीति रिवाजों में थोड़ बहुत अन्तर भी पाया जाता है। यही कारण है की पूरे भारत में अधिकतर लड़कियों (ladkiyon) के कान ही छिदवाये जाते है। पर कही-कही सिर्फ लड़कियों के ही नहीं बल्कि लड़कों (ladkon) का कान भी छिदवाया जाता है।
हालाँकि इसकी सही जानकारी आपको अपने घर के बड़े बुजुर्गों से मिल सकती है फिर भी कई लोग इस बारे में असमंजस में रहते है। क्योंकि वह नहीं जानते की उनके बच्चे के कान छिदवाने की सही उम्र, तरीका (tareeka), समय व स्थान कौन सा है। इसलिए इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएँगे की (bachche ke kan kab or kaise chidwayen?) बच्चे के कान कब और कैसे छिदवाएँ?
कान क्यों छिदवाते है?
कान में बाली
हिन्दू सभ्यता में बहुत ही प्राचीन समय से यह संस्कार चला आ रहा है। इसका वर्णन ग्रंथों और पुराणों में भी पाया जाता है। पर क्या आपको पता है की ऐसा क्यों करते है? ऐसा कहा जाता है की यह रीति रिवाज (riwaj) बुरी आत्माओं के साये, और नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बच्चों की रक्षा करता है। सही ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसके अनेक फायदे (fayde) है। यह एक प्रकार से एक्यूपंक्चर थेरेपी का ही अंग है। कान की संरचना बहुत घुमावदार होती है। अगर आपको सही बिंदु पता हो तो इससे बच्चे को अनेक चौकाने वाले लाभ मिल सकते है।
लड़की के कान में बाली
कान छिदवाने की सही उम्र (sahi umr) के बारे में कुछ लोगों की भ्रांतियां होती है। कही-कही बच्चे (bachche) के पैदा होने के 12-13 दिन के बाद नामकरण (naamkaran) वाले दिन पर ही कान भेद दिए जाते है। कुछ जगहों पर उनके मुंडन के समय कर्णछेदन (karn-chedan) की प्रथा होती है। कही कही तो लड़कों के मुंडन के समय ही उनके कान को छेदा जाता है, साथ ही उसी दिन ही लड़की कान छिदवाने (chidwane) की रीति भी चलन में है। हालाँकि यह गलत है, बच्चे के कान छिदवाने की सही उम्र 3 से 5 वर्ष के बीच होती है। हालाँकि बच्चों के कान वयस्कों की तुलना में अधिक कोमल होते है इसलिए आसानी से छेदे जा सकते है। पर 3 साल (saal) से छोटी बच्ची के कान नहीं छेदने चाहियें।
कान छिदवाने का शुभ दिन व शुभ महूर्त
आजकल अपनी हिन्दू संस्कृति की जानकारी की कमी के चलते लोग कभी भी अपने बच्चों के कान छिदवा देते है। जो की बिलकुल सही नहीं है। बच्चों के कान छिदवाना सही आयु (aayu) के साथ ही सही दिन (din), समय (samay), व शुभ मुहर्त (shubh muhurt) पर होता है। यही कर्णभेद संस्कार के नाम से जाना जाता है, इसलिए इसका पालन करना चाहिए। क्योंकि यह भारतीय संस्कृति के 16 सोलह संस्कारों (solah sanskaron) में से एक माना जाता है। जिसका आयोजन पूरे रीति रिवाज और नियमों के अनुसार ही किया जाना चाहिए।
कान छिदवाने की मशीन
हिन्दू रिवाज में सोने की तार से कान छेदने की प्रथा रही है, क्योंकि सोना पवित्र धातु होता है। पर आजकल लोग सुई या गन का इस्तेमाल भी करने लगे है। हालाँकि इन सभी के प्रयोग से पहले इन्हे संक्रमण रहित किया जाना चाहिए। नहीं तो बच्चे के कान में संक्रमण (इंफेक्शन) का खतरा भी हो सकता है। इसके लिए बच्चे के कर्णपाली को साफ करें। फिर उसके सर को मजबूती और प्यार से पकड़ना चाहिए। जिससे वह बिलकुल भी न हिले, और कान के आसपास यह अन्य अंगों में उसे चोट न लगे। अन्यथा बच्चे के कान से खून भी निकल सकता है। फिर संक्रमण रहित तार या गन से प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा उसके कान को छेदा जाना चाहिए। साथ ही किसी भी विधि (vidhi) के प्रयोग से पहले डॉक्टर कि सलाह भी अवश्य लें।
कान किससे छिदवाने चाहिए?
कान छिदवाने के लिए लोग किस सुनार (स्वर्णकार) के पास जाना पसंद करते है। क्योंकि वह सोने (sone) के तार से बच्ची के कान भेदने के बाद उसे मोड़कर बाली (Bali) के रूप में पहना देता है, जो की शुभ है। कही कही वैद्य और पंडित जी से भी यह कार्य करवाने की प्रथा है। पर आजकल लोग कई अन्य रस्ते भी अपनाने लगे है। और घर पर खुद ही कर्णछेदन कर देते है। पर इसमें सावधानी रखनी चाहिए। मेरी सलाह है की आप किसी पेशेवर व्यक्ति की सहायता लें जिसे आपके नन्हे मुंहे बच्चे के कान में दर्द कम हो।
कान छिदवाने से पहले तैयारी
यह दिन किसी भी बच्चे के साथ उसके माता पिता के लिए भी बहुत अहम् होता है। इसलिए लड़कियों के कान छिदवाने से पहले डॉक्टर से उनके स्वास्थ्य की जांच अवश्य करवा लें। जिससे उन्हें कोई कान से सम्बंधित रोग (rog) या संक्रमण न हो। बच्चों को सर के ऊपर से पहनाने वाले कपडे न पहनाएं। इसके स्थान पर बटन वाले कपडे पहनाएं, जिससे बाद में उन्हें आसानी से खोला जा सके। कान छेदने के लिए सभी जरुरी सामान तैयार रखें। और किसी समस्या से बचने के लिए चिकित्सीय सहायता भी साथ रखें। बच्चे को उत्साहित करें और अच्छे मूड (मनोस्थिति) में रखें। या फिर आप उसकी पसंद के खिलौने या भोजन दें। जिससे उसे कान छिदवाते समय कोई डर न लगे।
कान में सोने की बाली
कान छिदवाने के बाद वैसे तो नीम (neem) की छोटी सी लकड़ी (lakdi) को डाल दिया जाता है। जिससे की कान में रोगाणुओं का हमला न हो। पर शहरों में ऐसा कर पाना शायद थोड़ा मुश्किल हो तो आप सोने के तार की बाली का प्रयोग कर सकते है। या फिर आप छोटे आकार के बुंदों (bundo) को भी इस्तेमाल कर सके है। पर ध्यान रखें की यह बहित अधिक छोटे न हो। अन्यथा यह छेद से बहार भी आ सकते है या उसमें फंस सकते है। बुंदे के पीछे लगने वाले पेंच और इसकी डंडी की लम्बाई ठीक होनी चाहिए जिससे इन्हे आसानी से उतरा व पहनाया जा सकें।
कान छिदवाते समय सावधानी
बच्ची (bachchi) के कान छिदवाते समय आपको बहुत सावधानी बर्तनी चाहिए। नहीं तो बच्चे को चोट भी लग सकती है और काफी दर्द (dard) भी हो सकता है। या फिर कान में सूजन भी हो सकती है। इसलिए आपको निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- लड़की के कान में बाली
- कान को जीवाणुनाशक तरल से साफ करें
- कर्णछेदन की वस्तु को संक्रमण-रहित करें
- कान छेदने से पहले तैयारी पूरी कर लें
- बच्चे को शांत रखें उसका ध्यान बटाएँ
- बच्चों को बहलाने के लिए पसंद की वस्तुएं दें
- कान भेदने के समय डॉक्टर वाले दस्ताने पहने
- किसी अनुभवी पेशेवर व्यक्ति की मदद लें
- बच्चे के स्वास्थ्य का मुआयना जरूर करें
- बीमार होने पर बच्चे के कान मत छिदवाएँ
- प्रक्रिया के समय बच्चे को मजबूती से पकड़े
- उसके सिर को बिलकुल भी न हिलने दें
- बच्चों के हाथ-पैर बहुत ध्यान से पकड़ें
- कान के लिए लायी गयी बालियां सही हों
- बच्चों को आरामदायक कपडे पहनाएं
कान छिदवाने के बाद क्या लगाएं?
कान छिदवाने के बाद आपको बच्चे के कान का बहुत ध्यान रखना चहिये। कुछ दिन तक ऐसा कुछ भी न करें जिससे उसके कान (kaan) में कोई चोट या दर्द हो। नहीं तो बाहरी कान में संक्रमण का खतरा भी हो सकता है। इसलिए कान छिदवाने के बाद बच्चे को हल्दी और नारियल के तेल का मिश्रण लगाना चाहिए। क्योंकि यह संक्रमण रोधी, जीवाणु नाशक होता है जिससे बच्ची के कान में सूजन, दर्द, जलन की शिकायत नहीं होती है। यह मिश्रण लगाने के बाद उसे सूखने दें और उस पर थोड़ी रुई लगा दें।
कान छिदवाने के फायदे
कान छिदवाने से बच्चों को कई प्रकार के लाभ मिलते है। इन लाभों को जानकर आपका भी इरादा बदल जायेगा। और यदि आप इस परंपरा से किनारा कर चुके है तो एक बार फिर से आप सोचने पर मजबूर हो जायेंगे। तो जानिए की क्या है वो चमत्कारी फायदे? यह इस प्रकार है –
- लड़की के कान छिदवाना
- बच्चे लम्बी आयु पा कर दीर्घायु होते है।
- शरीर के रक्त संचार में सुधार होता है।
- बच्चे के बुद्धि का बेहतर विकास होता है।
- बच्च्चों को लकवा रोग से सुरक्षा मिलती है।
- बच्चों की दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा होती है।
- बुरी शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है।
- लड़कियों के चेहरे पर चमक आती है।
- लड़कियों की त्वचा स्वस्थ रहती है।
- लड़कियों की सुंदरता में वृद्धि होती है।
- बच्चों के दिमाग का विकास होता है।
- आँखों की रौशनी तेज हो जाती है।
- बच्चों का हाजमा मजबूत हो जाता है
निष्कर्ष व परिणामबच्चों के कान छिदवाना कोई मामूली सी बात नहीं है। इसके पीछे बहुत ही पुराने रीति-रिवाज, प्रथाएं और वैज्ञानिक कारण भी है। यह कई प्रकार से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी है और साथ ही आजकल के फैशन के दौर में लड़कियों के लिए तरह-तरह के आभूषण पहनने के लिए भी बहुत जरुरी है। इसलिए पूरे विधि-विधान से ही बच्चों के कान छिदवाना चाहिए। जिससे उन्हें इसका सम्पूर्ण लाभ मिले और उनके कानों में भी कोई समस्या न हो, और वे बेहतर सुने व स्वस्थ रहें।